फाजिल्का जिले के किसान पर्यावरण की रक्षा करते हुए अलग-अलग तकनीक अपना कर गेहूं की बिजाई कर रहे हैं और ऐसा करते हुए वे पराली नहीं जला रहे हैं बल्कि पराली को खेत में मिलाकर गेहूं की बिजाई कर रहे हैं। ऐसे ही एक किसान हैं गांव ढाणी चिराग के यादविंदर सिंह जो अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का दीपक जला रहे हैं।

यादविंदर सिंह ने अपने खेत में बिना पराली जलाए मल्चिंग विधि से गेहूं की बुआई की है. इस विधि के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि धान की कटाई के बाद सबसे पहले रीपर से पुआल को बिछाते हैं और फिर गेहूं और डीएपी छिड़कने के बाद उस खेत में रीपर को निचा कर चला देते है , इस तरह बीज और खाद के ऊपर भूसे की एक परत बिछा दी गई और उसके बाद उन्होंने खेत को पानी लगाया.
उनका कहना है कि इस विधि में बुआई से पहले खेत में ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए और पानी बहुत हल्का लगाना चाहिए. जिससे बीज का अंकुरण अच्छे से होता है. इसी प्रकार, उन्होंने कहा कि चूंकि खेत पुआल से ढका रहता है और बुआई के समय जमीन की जुताई नहीं की जाती है, इसलिए इस खेत में खरपतवार कम होते हैं. इस काम के लिए किसी महंगी मशीन या बड़े ट्रैक्टर की जरूरत नहीं है. रीपर एक छोटा उपकरण है और आम गांवों में उपलब्ध है।
कृषि विज्ञान केंद्र फाजिल्का की टीम विशेष रूप से यादविंदर सिंह के फार्म पर उनका हौसला बढ़ाने के लिए पहुंची। इसमें कृषि मशीनरी विशेषज्ञ डॉ. किशन कुमार पटेल, मृदा विशेषज्ञ डॉ. प्रकाश चंद, गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. रूपिंदर कौर शामिल थीं, जिन्होंने यादविंदर सिंह को बधाई दी और अन्य किसानों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए कहा। मौके पर उपस्थिंत गांव के सरपंच सुखचैन सिंह व अन्य किसान भी कुछ क्षेत्र में इस तकनीक से गेहूं की बुआई करने पर सहमत हुए. प्रगतिशील किसान करनैल सिंह अलियाना ने भी इस विधि की बातें उन किसानों से साझा कीं जो स्वयं हर साल इस विधि से गेहूं की कुछ बुआई करते हैं।