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अमृतसर के वाघा बॉर्डर पर सैनिकों की कलाई पर बहनों ने बांधी राखी

अमृतसर (साहिब दयाल) राखी का त्योहार हर भाई बहन के लिए खास होता है, लेकिन अपनी फैमिली से दूर देश की सुरक्षा कर रहे जवानों के लिए यह त्योहार खाली ना जाए इसीलिए कई बहनें वाघा बॉर्डर पर राखी बांधने पहुंची । यह सिलसिला 1968 से चल रहा है जो अब तक जारी है। वाघा बॉर्डर पर कमलजीत की अध्यक्षता में रिहैबिलिटेशन एंड सेटेलमेंट ऑर्गेनाइजेशन (रासो) के सदस्य पहुंचे। जिन्होंने जवानों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा और उन्हें मिठाई खिलाई। वर्ष 1968 में जवानों को अटारी सीमा पर राखी बांधने का सिलसिला शुरू हुआ था। अमृतसर के बीबीके डीएवी कालेज में बतौर प्रोफेसर रहीं और पंजाब की पूर्व सेहत मंत्री लक्ष्मीकांता चावला का यह प्रयास आज देश की कई सीमाओं तक पहुंच चुका है। प्रो. चावला ने बताया कि पिछले 57 सालों में दिल को छूने वाले सैकड़ों अनुभव इस समारोह में मिलते रहे हैं। सीआरपीएफ की 41 बटालियन के जवानों को जब अमृतसर में राखी बांधी गई तो एक जवान रो पड़ा था। इस पल में सभी जवान भावुक हो जाते हैं। पंजाब में आतंकवाद के दौर यानी 1992 में जब अमृतसर के गली-बाजारों में सुरक्षा बलों के जवान विशेषकर सीआरपीएफ ही दिखाई देती थी। ऐसे में रक्षाबंधन पर जगह-जगह डेरा डालकर बैठे जवानों को वहीं राखी बाधी गई। प्रो. चावला ने बताया कि कालेज में प्रोफेसर रहते हुए उन्होंने ये सिलसिला शुरू किया था। अब झारखंड, पूंछ, हुसैनीवाला, अजनाला, खेमकरण, भिखीविंड व डेरा बाबा नानक सीमा क्षेत्र में लोग इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं। बीएसएफ के जवानों को कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने का हमने क्रम शुरू किया था, जिसमें बाद में पंजाब पुलिस, सीआरपीएफ, आर्मी को जवान भी जुड़ गए और अब हर साल सभी इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। प्रोफेसर चावला इस समय श्री दुर्गियाना कमेटी की प्रधान हैं। प्रो. चावला के अनुसार, विद्यार्थी जीवन में 1965 भारत-पाक का युद्ध उन्होंने नजदीक से देखा था। 1971 के युद्ध में सिविल डिफेंस तथा घायल सैनिकों की देखभाल का कार्य किया। जब किसी सैनिक को रक्षाबंधन के दिन देखती तो हृदय विचलित हो उठता है। अपने घरों से सैकड़ों मील दूर रहकर सीमाओं पर युद्ध और शांतिकाल में देश की सेवा करते हैं तो उनकी कलाई राखी के दिन सूनी क्यों रहे? इसी भावना से 1968 में वाघा सीमा में बीएसएफ के जवानों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाया गया। उसी दौरान पंजाब के पूर्व डीजीपी स्वर्गीय केपीएस गिल की कलाई पर 1992 में राखी बांधी गई थी, तब गिल ने मुझसे वायदा किया था कि बहनजी अगले साल जब राखी बंधवाने आउंगा, तब पंजाब से आतंकवाद का सफाया हो चुका होगा। 1993 में आतंकवाद के सफाए के बाद स्व. गिल ने अपना यह वायदा निभा दिया। पंजाब से आतंकवाद को खत्म कर गिल ने बहनों को उपहार दिया और वे दोबारा राखी बंधवाने आए। प्रो. चावला ने कहा कि रक्षाबंधन पैसों व उपहार के लेनदेन का पर्व नहीं। मुझे इस बात की खुशी है कि 1968 में हमने सीमा पर जो रक्षाबंधन अभियान चलाया वह पूरे देश में अब मनाया जा रहा है। देश की लाखों बेटियां सीमाओं पर जाकर सैनिकों को राखी बांध रही हैं।

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