Bombay Talkies Unknown Facts: ‘बॉम्बे टॉकीज’ उस दौर से हटकर फिल्में बनाता था. इसके फाउंडर्स देविका रानी-हिमांशु रॉय ने ‘दिलीप कुमार’ और ‘अशोक कुमार’ को इसी प्रोडक्शन के जरिए इंट्रोड्यूस कराया था.

Bombay Talkies Inside Story: फिल्म इंडस्ट्री वाले हमेशा कुछ ऐसा दिखना चाहते हैं जो दर्शकों को पसंद आ जाए. नेक्स्ट लेवल के चक्कर में एक्सपेरिमेंट्स किए जाते हैं जो कभी दर्शकों को पसंद आते हैं तो कभी बाउंस कर जाते हैं. लेकिन आज से लगभग 90 साल पहले एक युवक विदेश से नई तकनीकों को सीखकर आया था. वो भारतीय सिनेमा का कायापलट करना चाहता था और उसने ऐसा किया भी. उस शख्स का नाम हिमांशु रॉय था जिसने ‘बॉम्बे टॉकीज’ का निर्माण साल 1934 में किया.
‘बॉम्बे टॉकीज’ हिमांशु रॉय और उनकी वाइफ देविका रानी का ड्रीम प्रोजेक्ट था. इस प्रोडक्शन कंपनी में भारत की पहली 1 करोड़ की कमाई करने वाली फिल्म बनी. इस कंपनी ने अशोक कुमार और दिलीप कुमार जैसे स्टार्स खोजे थे. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि ये कंपनी अचानक बंद कर दी गई?
कब शुरू हुआ था ‘बॉम्बे टॉकीज’?
‘बॉम्बे टॉकीज’ का आईडिया हिमांशु रॉय और देविका रानी को साल 1930 में आया था. ‘बॉम्बे टॉकीज’ को बनाने के लिए हिमांशु और देविका ने बॉम्बे के पास मलाड में जमीन खरीदी. इस प्रोडक्शन कंपनी में वो सबकुछ मौजूद था जो उस दौर की दूसरी भारतीय प्रोडक्शन कंपनी के पास नहीं था.
इस कंपनी में साउंडप्रूफ हॉल था के साथ-साथ शूटिंग प्रोसेसिंग लैब भी थी, जिसमें शूट की गई फिल्मों के नेगेटिव बड़े पर्दे पर पॉजिटिव होकर दिखते थे. बॉम्बे टॉकीज में एडिटिंग रूम हुआ करते थे. फिल्मों को रिलीज से पहले प्रिव्यू के लिए भी बड़ा हॉल था. इन सबकी जानकारी उस दौर में किसी भी भारतीय फिल्ममेकर को नहीं थी.
फिल्मों को बनाने का तरीका, कैमरे से शूट किस एंगल से करना है और कहां से लाइटिंग देनी है, ये सबकुछ उस दौर के फिल्ममेकर्स नहीं जानते थे लेकिन हिमांशु रॉय ने ‘बॉम्बे टॉकीज’ के जरिए ये सब दिखाया था. उन्होंने यूरोपीय टेक्निशियन्स को बुलवाकर ‘बॉम्बे टॉकीज’ को हाईटेक कंपनी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
इस टॉकीज में काम करने वाले हर शख्स को सैलरी दी जाती थी, चाहे वो कोई एम्पलॉई हो या फिर कोई फिल्म स्टार. यहां साइनिंग अमाउंट नहीं दिया जाता था इसलिए अशोक कुमार और दिलीप कुमार जैसे सितारों ने यहां मंथली सैलरी पर काम किया.
साल 1935 में पहली फिल्म ‘जवानी की हवा’ बनाई जो बॉक्स ऑफिस पर कमाल ना कर सकी. इसके बाद साल 1936 में फिल्म ‘जीवन नईया’ आई जिससे अशोक कुमार को इंट्रोड्यूस किया गया. इसी साल दूसरी फिल्म ‘अछूत कन्या’ भी रिलीज हुई थी. इन दोनों फिल्मों में अशोक कुमार के साथ देविका रानी थी और ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई थी.
‘बॉम्बे टॉकीज’ से कौन-कौन जुड़ा था?
‘बॉम्बे टॉकीज’ के मालिक हिमांशु रॉय और देविका रानी थे लेकिन इस कंपनी को चलाने के लिए कई और लोग भी जुड़े थे. उनमें से एक थे ज्ञान मुखर्जी जो सारे टेक्नीशियन को सुपरवाइज करते थे. रायबहादुर चुन्नीलाल जो प्रोडक्शन कंट्रोलर के तौर पर काम करते थे. इनमें से सबसे खास सशाधर मुखर्जी थे जो ‘बॉम्बे टॉकीज’ के सबसे बड़े प्रोड्यूसर थे
सशाधर मुखर्जी हिमांशु रॉय के दोस्त थे और अशोक कुमार को यहां लाने वाले वही थे, क्योंकि सशाधर मुखर्जी रिश्ते में अशोक कुमार के जीजा लगते थे. साल 1940 में हिमांशु रॉय के निधन के बाद ‘बॉम्बे टॉकीज’ की मालकिन देविका रानी बन गईं.
इंडियन सिनेमा की पहली 1 करोड़ कमाने वाली फिल्म
‘बॉम्बे टॉकीज’ में बैक टू बैक फिल्में बनती रहीं लेकिन साल 1943 में ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म किस्मत ने भारतीय बॉक्स ऑफिस का इतिहास बदला. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 1 करोड़ रुपये की कमाई की थी.
1 करोड़ की कमाई करने वाली ‘किस्मत’ भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म थी. इस फिल्म में अशोक कुमार और देविका रानी ने कमाल की एक्टिंग की थी और फिल्म की कहानी को भी पसंद किया गया था.
अशोक कुमार और दिलीप कुमार ‘बॉम्बे टॉकीज’ की थे खोज
साल 1936 में आई फिल्म जीवन नईया से अशोक कुमार ने डेब्यू किया था. इसी प्रोडक्शन कंपनी में अशोक कुमार ने बैक टू बैक फिल्में कीं. लेकिन बाद में वो दूसरे प्रोडक्शन के साथ काम करने लगे थे. उस दौरान देविका रानी को अपने प्रोडक्शन कंपनी ‘बॉम्बे टॉकीज’ को नया हीरो चाहिए था. देविका रानी ने काफी ढूंढा लेकिन उन्हें कोई चेहरा नहीं मिल पा रहा था.
कुछ समय बाद देविका रानी ने युसुफ खान को ढूंढ निकाला और उन्हें ‘दिलीप कुमार’ नाम दिया. साल 1944 में फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से दिलीप कुमार को लॉन्च किया गया. फिल्म खास कमाल नहीं कर पाई थी और बाद में दिलीप कुमार ने दूसरे प्रोडक्शन के साथ काम करना शुरू कर दिया था.
क्यों बंद हुआ ‘बॉम्बे टॉकीज’?
जब देविका रानी अकेले ‘बॉम्बे टॉकीज’ चलाने लगीं तो सशाधर मुखर्जी को ये बात पसंद नहीं आई. वो इस प्रोडक्शन कंपनी को कंट्रोल करना चाहते थे लेकिन देविका रानी के पास सारे राइट्स थे. एक तरफ देविका रानी अकेली थीं वहीं दूसरी तरफ सशाधर मुखर्जी, अशोक कुमार, ज्ञान मुखर्जी और रायबहादुर चुन्नीलाल थे. ये तनातनी हिमांशु रॉय के निधन के बाद शुरू हुई.
देविका रानी ‘बॉम्बे टॉकीज’ के झगड़ों से और फिल्में ना चलने की वजह से काफी परेशान थीं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1945 में वो ब्रेक पर रूस गईं और वहां से उनकी शादी की खबरें आईं. उन्होंने Svetoslav Roerich से शादी कर ली थी. इसके बाद जब मुंबई आईं तो ‘बॉम्बे टॉकीज’ के अपने सारे शेयर्स बेच दिए और फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी.
दोनों फाउंडर्स के जाने के बाद ‘बॉम्बे टॉकीज’ अनाथ जैसी हो गई थी. ‘बॉम्बे टॉकीज’ के कर्मचारियों ने अशोक कुमार से रिक्वेस्ट की कि वो कंपनी की बागडोर संभाल लें. अशोक कुमार ने ऐसा किया भी लेकिन इस प्रोडक्शन की बैक टू बैक फिल्में फ्लॉप होने लगीं.
देविका रानी ने जो कंपनी के शेयर्स बेचे थे उन्हें तोला राम जालान ने खरीदे थे उन्होंने ‘बॉम्बे टॉकीज’ बंद करने का फैसला लिया. कंपनी खुलने के 20 साल बाद यानी साल 1953 को ‘बॉम्बे टॉकीज’ में ताला लग गया. इस प्रोडक्शन की आखिरी फिल्म ‘बादबान’ थी.