fbpx

क्या है ‘जीरो फूड चिल्ड्रन’, जिसमें गरीब अफ्रीकी देशों से भी पिछड़ा भारत? आंकड़ें देख रह जाएंगे हैरान

भारत ‘जीरो-फूड चिल्ड्रन’ के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है. गिनी और माली ही दो ऐसे देश हैं जो भारत से आगे हैं.

दुनियाभर के देशों की भूख और गरीबी पर की गई एक स्टडी सामने आई है. ये स्टडी JAMA नेटवर्क ओपन में प्रकाशित की गई है. इसके अनुसार भारत में 6.7 मिलियन ‘जीरो-फूड चिल्ड्रन’ हैं. यानी देश में 60 लाख से ज्यादा ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 6-23 महीने के बीच है और उन्हें कई बार 24 घंटे (एक दिन) तक शरीर की जरूरत के मुताबिक कैलोरी नहीं मिल पाती है.

हालांकि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को फर्जी बताया है. एक बयान में, मंत्रालय ने कहा कि लेख में प्राथमिक शोध का अभाव है और इसमें भ्रामक दावे किए गए हैं.

ऐसे में विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये जीरो फूड चिल्ड्रन क्या है और भारत में इस आंकड़े के इतने ज्यादा होने के पीछे की वजह क्या है?

तीसरे नंबर पर है भारत

स्टडी के अनुसार भारत ‘जीरो-फूड चिल्ड्रन’ के मामले में विश्व में तीसरे नंबर पर है. गिनी और माली ही दो ऐसे देश हैं जो इस मामले में भारत से आगे है. गिनी में जहां 21.8% जीरो फूड चिल्ड्रन हैं तो वहीं माली में 20.5 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिन्हें कई बार 24 घंटे तक खाना नहीं मिल पाता है. भारत का प्रतिशत 19.3% है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और इथियोपिया जैसे तथाकथित गरीब देशों के आंकड़े भी भारत से बेहतर हैं. रिपोर्ट में भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में जीरो फूड चिल्ड्रन की संख्या बांग्लादेश में 5.6%, पाकिस्तान में 9.2%, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ दी कांगो में 7.4%, नाइजीरिया में 8.8% और इथियोपिया में 14.8% है.

रिसर्च का आंकड़ा कहां से लिया गया

इस रिसर्च में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत काम करने वाली एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2019-2021 के डाटा का इस्तेमाल किया गया है और इस रिपोर्ट के लिए रिसर्च पॉपुलेशन हेल्थ शोधकर्ता एस.वी. सुब्रमण्यम ने की है.

क्या होता है जीरो फूड चिल्ड्रन

जीरो फूड चिल्ड्रन का मतलब ऐसे बच्चों से है जिन्हें 24 घंटों में उनके शरीर के लिए जरूरी कैलोरी के हिसाब से पौष्टिक भोजन न मिला हो. यानी बच्चों को 24 घंटे तक ऐसा खाना नहीं मिल रहा जिसकी उनके शरीर को जरूरत है.

एक्सपर्ट्स के अनुसार बच्चों के विकास के लिए पोष्टिक आहार का शरीर में जाना सबसे जरूरी है क्योंकि इसका सीधा असर उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है. जीरो-फूड चिल्ड्रन में ऐसे बच्चों की गिनती की जाती है जिनकी उम्र छह महीने से लेकर 24 महीने के बीच की हो.

सबसे ज्यादा दक्षिण एशिया के देशों में भूखे रह रहे हैं बच्चे

रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में सबसे ज्यादा जीरो फूड चिल्ड्रन की संख्या दक्षिण एशिया में ही है, यहां लगभग 80 लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें सही मात्रा में पौष्टिक आहार नहीं मिलता और इन 80 लाख बच्चों में से 67 लाख बच्चे केवल भारत में हैं.

हालांकि इसी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि 92 देशों में छह महीने से कम उम्र के लगभग 99 प्रतिशत से ज्यादा जीरो-फूड वाले बच्चों को स्तनपान कराया गया था. यानी उन्हें जरूरत के हिसाब से भोजन तो नहीं मिल पाया लेकिन सभी बच्चों को 24 घंटे की दौरान कुछ कैलोरी मिली थी.

रिपोर्ट कहती है कि असल समस्या तो छह महीने या उससे बड़े बच्चों के साथ आती है क्योंकि ये वो समय होता है जब केवल स्तनपान से बच्चों को जरूरी पोषण नहीं मिल पाता. एक्सपर्ट्स के अनुसार छह महीने के बाद बच्चों को स्तनपान के अलावा भी खाने के जरिये जरूरी प्रोटीन, एनर्जी, विटामिन और मिनरल्स की जरूरत होती है.

भारत में क्यों है आंकड़े चौंकाने वाले

2019 से लेकर साल 2021 के बीच हुए हेल्थ सर्वे डेटा की मदद से ही 2023 में इस डेटा का फर्स्ट एस्टीमेट यानी शुरुआती अनुमान साझा किया गया है. इसके अनुसार भारत में हर 10 नवजात शिशुओं में से दो बच्चों को दिनभर में कुछ भी कैलोरी युक्त भोजन नहीं मिलने का जोखिम बना रहता है.

रिपोर्ट की मानें तो भारत में जीरो-फूड चिल्ड्रन की संख्या 2016 में 17.2 फीसदी थी, जो कि साल 2021 में बढ़कर 17.8 प्रतिशत पहुंच गई और 2023 में 19.3% हो गई है. रिसर्चर सुब्रमण्यन के मुताबिक ये आंकड़े गंभीर ‘फूड डेप्रिवेशन’ यानी भोजन के अभाव की ओर इशारा करते हैं.

किन राज्यों में है सबसे ज्यादा जीरो-फूड चिल्ड्रन की संख्या

रिसर्च के लिए भारत के 59 लाख बच्चों का सर्वे किया गया था. ये बच्चे देश के अलग-अलग राज्यों के थे और सर्वे से पता चलता है कि जीरो-फूड बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में है. इस राज्य के लगभग 27.4 प्रतिशत बच्चों को 24 घंटो तक पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है. दूसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ है यहां के 24.6% बच्चे जीरो फूड बच्चों की कैटेगरी में आते हैं. वहीं झारखंड में 21%, राजस्थान में 19.8% और असम में 19.4% प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिन्हें सही मात्रा में कैलोरी नहीं मिल पाती है.

इसके अलावा भारत के कुल 20 राज्य ऐसे भी हैं जहां जीरो फूड चिल्ड्रन की संख्या पिछले आंकड़ों की तुलना में कम हुई है. इन राज्यों में बंगाल भी शामिल है. यहां साल 2916 में जीरो फूड बच्चों की संख्या 12.1% थी जो कि 2021 में घटकर 7.5% पर आई.

100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को नहीं मिलता हेल्दी फूड

FAO, IFAD, यूनिसेफ, WFP और WHO की रिपोर्ट की मानें तो भारत में 74% से ज्यादा और पूरी दुनिया में 42% से ज्यादा आबादी को सेहतमंद भोजन नहीं मिल पाता है. यही उनके कुपोषण की समस्या का जिम्मेदार भी है. इन रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में 100 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो कम पोषण वाला भोजन खाने को मजबूर हैं.

वहीं दूसरी तरफ भारत का पड़ोसी देश चीन की स्थिति इससे बहुत बेहतर है. यहां केवल 11 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जो पोषणयुक्त खाना नहीं ले पाते या उन्हें हेल्दी फूड नहीं मिल पाता है.

भारत के बुजुर्गों को भी प्रभावित कर रहा है कुपोषण

भारत में कुपोषण केवल बच्चों और युवाओं के लिए ही चिंता का विषय नहीं है बल्कि यह बुजुर्गों को भी प्रभावित कर रहा. इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पापुलेशन साइंसेज से जुड़े एक अध्ययन से पता चला है कि देश में 60 साल से ज्यादा उम्र के लगभग 28 फीसदी पुरुष और 25 फीसदी महिलाओं का वजन सामान्य से कम है.

इसी उम्र की लगभग 37 फीसदी महिलाएं और 25 फीसदी पुरुष बढ़ते वजन और मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं. यानी बुजुर्ग महिलाओं में बढ़ता वजन और मोटापा भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है.

अपनी इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने 59,073 लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है. इन लोगों की उम्र 45 साल या उससे ज्यादा थी.

आखिर कुपोषित क्यों होते हैं लोग

इसका सबसे बड़ा कारण गरीबी है- बहुत से लोग पैसों की कमी के कारण नियमित संतुलित खाना नहीं खा पाते. आर्थिक तंगी के समय में कुपोषण की स्थिति साफ दिखाई देने लगती है. कुपोषित शरीर बीमारियों से लड़ नहीं पाता जिससे उनका कुपोषण बढ़ता ही जाता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *